ध्यान के शुरुवाती कदम

शुरुवात में एकान्त में बैठकर ध्यान और भजन करना चाहिए। जो अनुकूल पड़े वह आसन लगाइए। हां, तो कोई भी आसन हो, तुम्हें आपको बैठने से कमर में दर्द आ गया, या और कहीं दर्द हो गया, या अभ्यास नहीं है- तो उसको बदल दिया जा सकता है। फिर शुरू करो। लेटकर करो-अगर पड़े-पड़े नींद आ जाती है- खड़े-खड़े करो। अगर ऐसे नहीं आता है, तो चलते-चलते करो। करना है, इसमें कोई दिक्कत नहीं। आसन बदला जा सकता है। और यह हम पहले कह चुके हैं, कि साधन अबाधित होना चाहिए। ऐसा नहीं कि हम बैठ जायं, तब तो हमारा ध्यान लग जाय, और जब खड़े हो जायं तो लगे ही नहीं। तब तो फिर माया ने अच्छा न हमसे पीठ फेरी? जब हम ध्यान करेंगे, तब तो भगवान हमारे पास रहेंगे, हमको बचा लेंगे। और जब खड़े हैं-चलते हैं, खाते हैं और ध्यान नहीं है, तो फिर उस समय तो भगवान रहेंगे नहीं। भगवान नहीं रहेंगे, तो माया आ जायगी। जब भगवान नहीं रहेंगे, तो (हमारे मन में) माया अधिकार कर लेगी। तो ऐसे कैसे काम चलेगा? इसलिये हम बैठे रहें, तो भगवान को लिये रहें। खड़े रहें तो भी, भगवान को लिये रहें। सो जायं तो भी, भगवान ही बैठा रहे अंदर। हम कभी जगह न दें, अन्य को।अगर जगह दे