कान्वेंट स्कूल के फंदे
मेरा बचपन इलाहाबाद
में बीता है | बचपन में अपने आसपास के बच्चों को convent school
में जाते
देख मेरी भी इच्छा होती थी कि मेरी पढ़ाई हिंदी माध्यम की जगह अंग्रेजी माध्यम से
हो |
School के बाद कॉलेज में A TO
Z ENGLISH SYLLABUS से जब पाला पड़ा तो
अंग्रेजी माध्यम के विद्यार्थियों की अपेक्षा
हिंदी माध्यम से होने की वजह से मुझे अच्छी खासी परेशानी झेलनी पड़ी यह अलग बात है
कि हमारी अंग्रेज़ी की नीव मज़बूत होने की वजह से कॉलेज पूरा होते होते हम अंग्रेजी के अभ्यस्त चुके थे |
अपने अतिरिक्त जेब
खर्च को पूरा करने के लिए हमने अपनी सहेली की सलाह पर एक औसत दर्जे के convent school में पढ़ाने की ठानी | इस school
ke management ने हमें 2 हजार रुपये मासिक वेतन देने की बात कही क्योंकि रिजल्ट आने में
1 माह का समय
शेष था | हमने भी हामी भर दी |
धीरे धीरे हमें इस convent schoolके कुछ गुप्त नियम ज्ञात हुए जो निम्न वत है ---
1.
School 8:00 बजे सुबह शुरू होता है तो यदि
शिक्षिका 8:30 पर आई तो उसके आधे दिन का वेतन कटेगा |
( अब तक के
जीवन में मैं कभी भी कहीं भी लेटलतीफ नहीं हुई अतः मुझे इस नियम से कोई
समस्या नहीं थी|)
2.
इस school में टीचर को साड़ी पहन कर आना
अनिवार्य था | यदि वह सलवार सूट ,जींस पैंट में आती है तो इस school में ही उनके कपड़े बदलने की व्यवस्था है | परंतु पढ़ाना उन्हें
साड़ी पहन कर ही है | (भारतीय नारी साड़ी में अपने सर्वोत्तम सौंदर्य में होती है यह
मैंने तब सुना ही था पर इस नियम को
चरितार्थ होते मैंने यहां पर देखा और मुझे यह ज्ञान प्राप्त हुआ कि बच्चे तभी
ध्यान से पढ़ते हैं जब उन्हें साड़ी पहनकर पढ़ाया जाए |)
फिलहाल
मुझे एक हफ्ते सलवार सूट में पढ़ाने की इजाजत मिल गई क्योंकि मुझे साड़ी पहनी ही
नहीं आती थी |( 21 वर्ष की उम्र में भला कौन सी
लड़की साड़ी पहनने में परफेक्ट होती है) |
मुझे बच्चों को अंग्रेजी grammar पढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी यहां मैं खुश थी क्योंकि भले
ही convent में मेरी पढ़ाई ना हुई हो पर मुझे
convent school में इंग्लिश grammar पढ़ाने की जिम्मेदारी इसलिए मिली क्योंकि मैंने school management से बात अंग्रेजी में की थी और उनके अपेक्षा ज्यादा सही
वाक्यों का उपयोग किया था |
3.
मुझसे यह कहा गया , भले ही कक्षा में मैं बच्चों को कम पढ़ाऊँ
पर homework
दुगना तिगुना
दूं | वजह बताई गई यदि मैं ऐसा करूंगी तो बच्चे घर में खेलने के बजाए homework करते हुए मां बाप को दिखेंगे और अभिभावक यह सोचेंगे कि निश्चित
ही school में ज्यादा पढ़ाई होती है तभी
बच्चा घर पर आकर पढ़ रहा है | अतः बच्चों को उनकी क्षमता से अधिक homework देना अनिवार्य है |
(यद्यपि
मेरा हृदय बच्चों के लिए द्रवित हो उठा परंतु अभिभावकों को उल्लू बनाने के इस
अभियान पर हंसी भी बहुत आई |)
4.
अंत में मुझे marking
system सिखाया
गया कि यदि बच्चा पढ़ाई में तेज है तो 95% से नीचे नहीं देना है यदि बच्चा औसत
विद्यार्थी है तो 85 % से नीचे
नहीं देना है और फेल हो सकने वाले विद्यार्थियों को 55% के ऊपर दे देना है वजह यह बताइ गयी कि जब बच्चा ज्यादा प्रतिशत पाता है तो मां-बाप
समाज के समक्ष स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं और साथ ही साथ यह भी बताते हैं
कि schoolमें कितनी पढ़ाई होती है |
क्योंकि वह बच्चों को homework में डूबे रहते हुए देखना पसंद
करते हैं | इस प्रकार school schoolका प्रचार प्रसार भी हो जाता है |
school management ने शिक्षकों के वेतन को तीन स्तर
पर बांटा था और शिक्षिकाओं की भी तीन
कैटेगरी बनाई थी --
१ - पुरानी
loyal teachers का ,जो कई सालों से school management bachche ki aankh fodiके साथ पूर्ण सामंजस्य से पढ़ा
रही थी|
२- गुप्तचर teachers का जिनका काम शिक्षा देने के साथ साथ management को आसपास की शिक्षिका क्लास में
क्या करती है क्या नहीं करती है ,इसकी खबर दिया करती थी और
३- नई
शिक्षिकाएं वह जो उन्हें जो schoolके management के विरुद्ध जा कर पढ़ाती थी |
यह गुप्त नियम school management ने अपने विश्वनीय शिक्षिका द्वारा मुझे समझाया | स्वयं कहने
का जोखिम को नहीं उठाना चाहते थे यद्यपि मुझे इन नियमो से आपत्ति थी पर मैंने यह
सोचकर आपत्ति दर्ज नहीं करी क्योंकि मेरे मन में यह था कि भला क्लास में जाने पर
अंदर बच्चों को कैसे पढ़ाना है यह मेरा काम है और मैं उन पर अत्याचार बिल्कुल भी
नहीं करुंगी | आखिर मैं भी कभी बच्ची थी पर जल्दी management को मेरे बच्चों को अतिरिक्त कार्यभार ना डालने की
खुराफात ज्ञात हो गई | management ने अपने प्रबंध अनुसार कुछ गुप्तचर
जो नियुक्त कर रखे थे | जो अपनी कक्षा में
पढ़ाई के साथ मेरे विषय और मेरी कार्यशैली की समीक्षा बच्चों से लेती रहती थी |
सौभाग्य से बच्चों ने मुझे बेहतरीन शिक्षिका होने का सम्मान दिया फिर भी नियमों की
अनदेखी करने पर मुझे चेतावनी management ने दे ही डाली |
मुझे यह फरमान असहनीय प्रतीत हुआ और 15 दिन बाद मैंने school जाने के बजाए घर पर बैठना उचित समझा | अपने नन्हे मासूम
विध्यार्थ्यो से मुझे स्नेह था और उन नन्हे- नन्हे बच्चो को जिन्हें विद्यालय
शिक्षक और प्रबंधक , मंदिर और देवी देवता के भांति सम्माननीय है ,कैसे उनकी क्षमताओं को
गलत दिशा दे रहे है यह मैं ना बता सकती थी ना ही उनके मासूम दिमाग को यह समझ में
आने वाला था | सो १५ दिन तक मेरे ज़मीर ने
मुझे इतना बुरा भला बोल डाला के मैंने school
जाने की बजाय
घर पर रहना उचित समझा |
फिर भी कुछ बच्चों के माता-पिता ने मेरा संपर्क
ढूंढ निकाला और मुझे tuition पढ़ाने को कहा | प्रत्येक बच्चे के लिए ₹2000 का tuition fees | मुझे ऐसे चार विद्यार्थी मिले
जिन्होंने मेरे अतिरिक्त खर्च को अति अतिरिक्त बना दिया | school का 8:00 से 1:00 बजे तक ₹2000 का …. 4 बच्चों का ₹8000...
इस अनुभव ने मुझे सिखाया कि मेरे
अभिभावक ज्यादा समझदार थे जो convent के झांसे में न आएं |
Note- लेखिका अज्ञात रहना पसंद करती है | यह उनके
विचार और अनुभव है | यदि आपके schoolसे जुड़े कोई अनुभव है तो कृपया
ज़रूर साझा करे | - admin
great, bahut badia post
ReplyDeletevery nice bahut he acchi post hai
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