आपके एहसासों की ताकत
निश्चित ही आप इस बात से उसका चरित्र नहीं देखेंगे कि उसके अंदर कौन सी भावनाएं चल रही हैं | बल्कि यह ध्यान देंगे कि वह किन भावनाओं को चुन कर उसके according निर्णय लेगा | आप इसके द्वारा यह निश्चय करेंगे कि व्यक्ति अच्छा है या बुरा | अगर उसके अंदर चल रहे ,अच्छे और बुरे विचारों में से वह अच्छे विचारों द्वारा जीवन ,घटना, परिस्थितियों में निर्णय ले रहा है तो आप उसे निश्चित ही अच्छा व्यक्ति मानेंगे और उसकी यदि सहायता भी करनी पड़ी तो आप करेंगे | इसी तरह अगर वो अच्छी भावनाओ के आधार पर विचार ना करके बुरी भावनाओ के आधार पर विचार करके अपने निर्णय लेता है ,तो आप उससे बुरा व्यक्ति मानेंगे |
इसी प्रकार आध्यात्मिक संसार में भी दैवीय शक्तियां किसी व्यक्ति के मन में उठ रहे भाव पर
लिए गए निर्णय पर यह निश्चित करती हैं कि वह संपर्क करने योग्य है या नहीं | इस
निर्णय क्षमता पर हम विस्तृत चर्चा किसी दूसरे पोस्ट में करेंगे | यहां सिर्फ बताने की कोशिश की जा रही है कि भौतिक संसार के
साथ साथ आध्यात्मिक संसार भी आपके व्यक्तित्व का आंकलन एवं आपके अध्यात्मिक
पात्रता का टेस्ट आपके सही भावनाओं पर लिए गए निर्णय पर करता है | यहीं से भावनाओं का महत्व पता चलता है |
यदि कोई कहे कि उसके अंदर
सिर्फ अच्छी भावनाएं ही रहती हैं या सिर्फ बुरे भावनाएं आती हैं तो निश्चित ही वह झूठ बोल
रहा है |
आध्यात्मिक शक्तियां और आपकी भावनाएं
आध्यात्मिक शक्तियां आपसे संपर्क भी भावनाओं के माध्यम से साधती हैं | यदि किसी साधक ने अपने आध्यात्मिक अनुभव कहे हैं ....शक्तियों से वार्तालाप करने में तो शब्द कुछ ऐसे होते हैं, “मुझे ऐसी अनुभूति हुई है ...जैसे अमुक देवता ने आदेश दिया या मुझसे कुछ कहा” ऐसी अनुभूति हुई अर्थात ऐसा भाव उठा या फिर जब मैं पूजा कर रहा था अथवा ध्यान में था ... “मुझे लगा जैसे अमूक देवी \ देवता \ ईश्वर मुझे देखकर मुस्कुराए”............ अनुभूति हुई.... मतलब एहसास हुआ.... ऐसी भावना उठी |
आपके हर विचार की उत्पत्ति
भावनाओं से ही होती है | आपके किसी निर्णय के बारे में, हर निश्चय जो आपने
लिया हो ,उसके पीछे ,मन के गहरे हिस्से में एक एहसास ही सबसे पहले होता है
और यदि आप खुद से पूछे .... कि किस भावना वश मैंने यह निर्णय लिया है ? आपका
मस्तिष्क आपको तुरंत उत्तर बता देगा ?
भावनाएं जिन्हें हम एहसास भी कहते हैं ,इन्हें ही जब हमारा मन शब्दों
में पिरो देता है और तब यें “विचार , ख्याल , कामना, इच्छा
कहलाते है |
आपमें
से कुछ कहेंगे कि नहीं ऐसा भी हुआ है कि उस दैवी शक्तियों की आवाज सुनी गई हो पर
यह अनुभव rarest of rare होगा | यहां पर
सामान्य रूप से शक्तियों के वार्तालाप का एक उदाहरण दिया गया है | इसे आप एक अपनी शक्तियों से आपके अंतर्मन की बात हुई है इसका एक symptom भी समझ सकते हैं | आप में से कुछ यह भी कहेंगे, यह पूरी तरीके से मनगढ़ंत बात है complete imagination or visualization है | इसे भी चेक किया जा सकता है ……आध्यात्मिक अनुभूति होने पर हमारा अंतर्मन पूरे समय शांत और प्रसन्न होता है | यह एक ऐसी स्थिति है जहां पर
अगर आप को इस बात का एहसास भी हो जाए कि आप जिस शक्ति की उपासना कर रहे हैं...उससे
आप कुछ भी मांग सकते है | तो भी आपके इच्छा नहीं होगी कि आप उससे दौलत शोहरत मांग लें
क्योंकि आपके मन में बस जो ख़ुशी है यह एहसास है कि ईश्वर ने आप से बात करी | आप फिर से इस अनुभव
को जीना चाहेंगे... बार-बार जीना चाहेंगे और यह अनोखा अनुभव आपको सालों तक याद
रहता है |
करोड़ों की संख्या में भावनाएँ मन में उपस्थित रहती हैं | इन उन्ही
में से यही कुछ एहसास है जो जीवन पर्यंत याद रहते हैं ...और यदि आपके साथ , अच्छे
से यह एक एहसास जुड़ा है तो आपके लिए यह एक एनर्जी बैंक की तरह भी काम करता है |
मतलब आप जब भी इस एक्सपीरियंस को याद करते
हैं आपको शांति महसूस होगी | भले ही जीवन
में कितने ही संघर्ष हो यह अनुभव indirectly आपको संघर्षों में भी शांति पूर्वक कर्म करते जाने की हिम्मत देगा |
यही वो एहसास होता है जिससे
हम परम शांति या परमानन्द कहते है | यही वो एहसास है जो फ़कीर साधू संत जीते है | उनके लिए यही एहसास सबसे बड़ी पूँजी होती है
| वो और कुछ नही मागते क्योकि इक्छा ही नही होती इस ख़ुशी को छोड़ कर कुछ और पाने की
.... ये एहसास जंहा पर आप पूरे समय अस्तित्व को स्वयं के पास , स्वयं में महसूस
करते हो .. ये वजह है, जो फकीरों को मस्त
मलंग बनाती है | ऐसे लोग बहार से भले ही
फ़कीर लगे ...लेकिन हमसे कंही ज्यादा धनवान होते है क्युकी वो सबसे समृद्ध होते है |
भावनाओं
का आप पर असर
अपनी सहूलियत के लिए इंसान ने अलग-अलग भावनाये emotion के नाम रखे
हुए हैं ,जैसे – क्रोध, प्रेम, करुणा, ईर्ष्या आदि और इसे दो मुख्य भागों में बटा हुआ है |
1.
सकारात्मक एहसास (positive
feeling) और
2.
नकारात्मक एहसास (negative
feeling)
हम सब में एक समय में कई
भावना चल रही होती हैं | इन भावनाओं की अलग-अलग तीव्रता frequency रहती
है----धीमी ,मध्य और तीव्र |
हम अपने निर्णय, भावनाओं की अलग-अलग frequencies पर करते हैं | उदाहरण के लिए मान लीजिए अगर आपने व्यक्ति ने किसी से पैसे उधार लिए हैं तो उधार चुकाते समय ,आपके के मन में मुख्यत: तीन
प्रकार की भावनाएं जागृत होंगी | पहली कि आप पैसे चुका दें और उधार देने वाले को धन्यवाद दे |
दूसरी कि आप रुपए ना चुकाए और जब उधार देने वाला आए तो उससे ना मिले |
तीसरी
कि आप के मन में उधार देने वाले व्यक्ति के सारे गुण दोष
आएंगे जिस पर आपको निश्चय करना है कि
वास्तव में उधार चुकाना है या नहीं
| अब यह व्यक्ति के प्रकृति पर निर्भर करता है कि वह इन तीनों में से कौन सी भावना
चुनेगा | यह तीनों भावनाएं व्यक्ति के मन में तीव्र ,मध्यम और धीमी तीनों ही
फ्रीक्वेंसी में आएंगी और जाएंगी|
एक अच्छे नेचर वाले व्यक्ति के मन में पैसे चुका देने की भावना तीव्र रूप में आएगी जबकि एक बुरी नजर वाले के मन में पैसे चुका देने ना चुकाने की भावना तीव्र रूप में आएगी और हम सभी जानते हैं कि दुनिया में ज्यादातर व्यक्ति ऐसे होते हैं जो कुछ मामले में अच्छे होते हैं और कुछ मामले में बुरे भी होते हैं | मतलब यह हमेशा ही अच्छे और बुरे के मध्य में फसे रहते हैं और ऐसे ही व्यक्तियों के मन में उधार चुकाना है या नहीं चुकाना यह भावना भी आती है इसे हम मध्यम भावना के रूप में डिस्क्राइब कर सकते हैं | कई बार व्यक्ति अपने प्रकृति से उलट जाकर निर्णय लेता है एक अच्छी प्रकृति का स्वामी या अच्छी नेचर वाला बुरे निर्णय ले बैठता है जबकि एक बुरे नेचर का व्यक्ति अच्छे अच्छे निर्णय ले लेता है| लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उसके मन में और भावनाए नहीं आती है | यह आपको decide करना है कि किन भावनाओं को.. अपने विचारों का आकार देना है और किन विचारों में अपनी निर्णय शक्ति को डालना है |
एक अच्छे नेचर वाले व्यक्ति के मन में पैसे चुका देने की भावना तीव्र रूप में आएगी जबकि एक बुरी नजर वाले के मन में पैसे चुका देने ना चुकाने की भावना तीव्र रूप में आएगी और हम सभी जानते हैं कि दुनिया में ज्यादातर व्यक्ति ऐसे होते हैं जो कुछ मामले में अच्छे होते हैं और कुछ मामले में बुरे भी होते हैं | मतलब यह हमेशा ही अच्छे और बुरे के मध्य में फसे रहते हैं और ऐसे ही व्यक्तियों के मन में उधार चुकाना है या नहीं चुकाना यह भावना भी आती है इसे हम मध्यम भावना के रूप में डिस्क्राइब कर सकते हैं | कई बार व्यक्ति अपने प्रकृति से उलट जाकर निर्णय लेता है एक अच्छी प्रकृति का स्वामी या अच्छी नेचर वाला बुरे निर्णय ले बैठता है जबकि एक बुरे नेचर का व्यक्ति अच्छे अच्छे निर्णय ले लेता है| लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उसके मन में और भावनाए नहीं आती है | यह आपको decide करना है कि किन भावनाओं को.. अपने विचारों का आकार देना है और किन विचारों में अपनी निर्णय शक्ति को डालना है |
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